जिनेवा, पीटीआइ। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भले ही अपने देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों को बराबरी से देखे जाने का दावा करें लेकिन संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट ने उनके दावे की कलई खोल दी है। इस रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यक हिंसा के शिकार हैं और उनके धर्मस्थलों पर हमले हो रहे हैं। सरकार उस ईशनिंदा कानून में बदलाव करने में विफल रही है जो अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का सबसे बदनाम कानून है। इस कानून में गवाहों के बयान पर ही मौत की सजा का प्रावधान है।
अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमले
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार मामलों की प्रमुख मिशेल बैचलेट ने मानवाधिकार परिषद के सत्र में पाकिस्तानी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जुनैद हाफिज का मामला रखा। इस मामले में बीती दिसंबर में पाकिस्तानी अदालत ने ईशनिंदा मामले में उनके लिए मौत की सजा का एलान किया है। बैचलेट ने कहा, पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यक हिंसा के लगातार शिकार हो रहे हैं, उनके पूजास्थलों पर हमले किए जा रहे हैं। कानून भी उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार कर रहा है।
सुधर नहीं रहा पाकिस्तान
अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बार-बार कहने के बावजूद पाकिस्तान हालात में सुधार नहीं कर रहा और न ही ईशनिंदा कानून में संशोधन कर रहा है। मिशेल अफ्रीकी देश चिली की पूर्व राष्ट्रपति हैं। बुधवार को पाकिस्तान की मानवाधिकार मामलों की मंत्री शिरीन मजारी ने सत्र को संबोधित करते हुए कहा था कि उनकी सरकार बच्चों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून में बदलाव करने पर गंभीरता से विचार कर रही है और आगे बढ़ रही है।
अल्पसंख्यकों से संबंधित है भारत का CAA
पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के हो रहे उत्पीड़न के मद्देनजर ही भारत में नागरिकता कानून में संशोधन (सीएए) किया गया है। पाकिस्तान समेत तीन पड़ोसी देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों को अब महज छह साल के प्रवास पर ही भारत की नागरिकता मिल सकेगी। पहले 12 साल के प्रवास के बाद नागरिकता के लिए आवेदन देना होता था।